fbpx

Hindu Philosophy: Key Concepts in Sanatan Dharma

aryasamaj, sanatandharma, vedicrituals, spiritualindia, ancienttemple, Hindu Philosophy

Understanding Key Concepts in Sanatan Dharma

Table of Contents

Introduction

Continuing our weekly thematic exploration at HinduInfoPedia.org, this blog post, scheduled for June 5, 2024, delves deeper into Hindu philosophy and its significance within Sanatan Dharma. Building on the previous discussions on the first and second sets of definitions provided by Maharishi Dayanand Saraswati, a revered scholar and founder of the Arya Samaj, we now explore the final 34 essential definitions from his seminal work, “आर्योदेशरत्नमाला.” These definitions further shape our understanding of Hindu philosophy and its practical applications in daily life.

Sanatan Dharma presents a unique framework that accommodates diverse beliefs, including atheism, reflecting the inclusivity fundamental to Hindu thought. Arya Samaj, initiated by Maharishi Dayanand, advocates for a form of worship that eschews idolatry, aligning with the tenets of Vedic scripture. This blog series continues to explore these nuances, aiming to deepen the reader’s appreciation for the broad and inclusive nature of Hinduism and the specific interpretations of Maharishi Dayanand Saraswati.

Exploring Key Concepts in Hindu Philosophy

This segment of our series transitions from theoretical discussions to a practical examination of the final definitions. By exploring each term closely, we continue to enrich our understanding of the expansive and intricate philosophy that Maharishi Dayanand Saraswati captured in “आर्योदेशरत्नमाला.” Here, we address complex concepts that are foundational to the practice and understanding of Sanatan Dharma, starting with the concept of जड़ (Inert).

Translation Disclaimer

Please note that the translations provided in this document are subject to the interpretations of the translator. Due to the complex and nuanced nature of Hindi and Sanskrit languages, some words and contexts may not have direct or exact equivalents in English. As such, the translations are intended to convey the closest possible meanings but should be considered approximations. Readers are encouraged to consider these translations within the broader cultural and contextual framework of the original texts.

67. जड़ (Inert)

जो वस्तु ज्ञानादि गुणों से रहित है; उसको ‘जड़’ कहते हैं।।

Definition: That which is devoid of qualities such as knowledge; this is called ‘जड़.’

68. चेतन (Conscious)

जो पदार्थ ज्ञानविज्ञान गुणों में रहित है; उसको ‘चेतन’ कहते हैं।

Definition: That which possesses the qualities of knowledge and wisdom; this is called ‘चेतन.’

69. भावना (Emotion)

जो जीवों या वस्त्रों का विचार के द्वारा निश्चित करना कि जिसका निश्चय फलस्वरूप हो अर्थात जैसे हो वैसे ही मन में लगाये; उसको ‘भावना’ कहते हैं।

Definition: The determination of living beings or objects through thought, where the outcome is as one envisages it; this is called ‘भावना.’

70. अभावना (Absence of Emotion)

जो भावना से उलटा हो अर्थात जो मिथ्याज्ञान से अन्य में अन्य निश्चय वाला हो और नित्य में जोड़ने वाला जिसे चेतना में रजगुण निर्णय कर लेते हैं; उसको ‘अभावना’ कहते हैं।

Definition: The opposite of भावना, where false knowledge leads to erroneous conclusions; this is called ‘अभावना.’

71. पण्डित (Scholar)

जो यह प्रखर और विवेक से जानने वाला, अल्पज्ञता सत्यनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, विज्ञान और सबका हितकारी है, उसको ‘पण्डित’ कहते हैं।

Definition: One who knows through sharp intellect, is truthful, knowledgeable, and beneficial to all; this is called ‘पण्डित.’

72. मूर्ख (Fool)

जो अज्ञानी, दुष्ट, दुर्बलवित्त दोष शील है उसको ‘मूर्ख’ कहते हैं।

Definition: One who is ignorant, wicked, and characterized by flaws; this is called ‘मूर्ख.’

73. श्रेष्ठ कनिष्ठ व्यवहार (Conduct with Superiors and Inferiors)

जो बड़े और छोटों से यथायोग्य परस्पर मान्य करना है; उसको श्रेष्ठ कनिष्ठ व्यवहार’ कहते हैं।।

Definition: Interacting with seniors and juniors appropriately and respectfully; this is called ‘श्रेष्ठ कनिष्ठ व्यवहार.’

74. सर्वहित (Universal Benefit)

जो तन, मन और धन से सबके मुख्य बढ़ाने में उद्योग करना है; उसको ‘स्ववित्त’ कहते हैं।।

Definition: Striving for the upliftment of all through mind, body, and wealth; this is called ‘सर्वहित.’

75. चोरी त्याग (Renunciation of Theft)

जो स्वामी की आज्ञा के बिना किसी के पदार्थ का ग्रहण करना है, वह ‘चोरी’ और उसको छोड़ना ‘चोरी त्याग’ कहता है।

Definition: Taking anything without the owner’s permission is theft, and its renunciation is called ‘चोरी त्याग.’

76. व्यभिचार त्याग (Renunciation of Adultery)

जो अपनी स्त्री के बिना दूसरी स्त्री के साथ गमन करना और अपनी स्त्री को भी सन्मार्ग बिना विद्यार्जन देना तथा अपनी स्त्री के साथ भी वार्ष्य का अत्यन्त नाश करना और युवावस्था के बिना विवाह करना है; यह सब ‘व्यभिचार’ कहलाता है। उसको छोड़ देने का नाम ‘व्यभिचार त्याग’ है।

Definition: Engaging with someone else’s spouse or improper conduct with one’s spouse, and renouncing such acts is called ‘व्यभिचार त्याग.’

77. जीव का स्वरूप (Nature of the Soul)

जो चेतन, अल्पज्ञ, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान गुण वाला और नित्य है वह ‘जीव’ कहता है।

Definition: The soul is conscious, has limited knowledge, desires, aversions, efforts, pleasure, pain, and knowledge, and is eternal; this is called ‘जीव का स्वरूप.’

78. स्वभाव (Nature)

जिस वस्तु का जो स्वाभाविक गुण है जैसे कि अग्नि में रूप, दाह अर्थात जब तक वह वस्तु रहे तब तक उसका वह गुण भी नहीं छूटता इसलिए इसको ‘स्वभाव’ कहते हैं।

Definition: The inherent quality of an object, such as fire’s heat and light, which remains as long as the object exists; this is called ‘स्वभाव.’

79. प्रलय (Dissolution)

जो कार्य जगत का कारण रूप होना अर्थात जगत का करने वाला ईश्वर जिन-जिन कारणों से सृष्टि बनाता है कि अनेक कार्यों की रचके यथायथ पालन करके पुनः कारण रूप करके रखना है उसको नाम ‘प्रलय’ है।

Definition: The process by which the universe is created, maintained, and dissolved by God, returning to its causal state; this is called ‘प्रलय.’

80. मायावी (Illusory)

जो छल, कपट, स्वार्थ में ही प्रसारित, दम्भ, अहंकार, शठताादी दोष हैं; इसको ‘माया’ कहते हैं। जो मनुष्य इससे युक्त है; वह ‘मायावी’ कहता है।

Definition: Deception, hypocrisy, and self-interest; a person with these qualities is called ‘मायावी.’

81. आप्त (Trustworthy)

जो छलहीन दोष रहित, धर्मात्मा, विद्वान, सत्योपदेशक, सब पर कृपादृष्टि से वर्तमान होकर अविद्यारुप अज्ञान का नाश करके अज्ञानी लोगों के आत्माओं में विद्याश्रूप सूर्य का प्रकाश सब को; उसको ‘आत्म’ कहते हैं।

Definition: One who is free from deceit, virtuous, knowledgeable, truthful, and benevolent, dispelling ignorance with wisdom; this is called ‘आप्त.’

82. परीक्षा (Examination)

जो प्रत्यक्षादि आठ प्रमाण, वेदविद्या, आत्मा की शुद्धि और सृष्टिक्रम से अनुकूल विचार सत्यासत्य को ठीक-ठीक निर्णय करना है; उसको ‘परीक्षा’ कहते हैं।

Definition: Determining truth through eight proofs, Vedic knowledge, purification of the soul, and alignment with the order of creation; this is called ‘परीक्षा.’

83. आठ प्रमाण (Eight Proofs)

प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, ऐतिहास, अर्थापत्ति, सम्भव और अभाव ये ‘आठ प्रमाण’ हैं। इसी से सब सत्यासत्य का यथावत् निर्णय मनुष्य कर सकता है।।

Definition: Direct perception, inference, comparison, verbal testimony, historical documentation, implication, possibility, and non-existence; these are called ‘आठ प्रमाण.’

84. लक्षण (Characteristic)

जिसमें लक्ष्य जाना जाय जो कि उसका स्वाभाविक गुण है। जैसे कि रूप में अग्नि जाना जाता है इसलिए इसको ‘लक्षण’ कहते हैं।।

Definition: The inherent quality that makes an object recognizable, such as the heat in fire; this is called ‘लक्षण.’

85. प्रमेय (Proposition)

जो प्रमाणों से जाना जाता है जैसा कि आँख का प्रमेय रूप अर्थ है। जो कि इन्द्रिय से प्रतीत होता है; उसको ‘प्रमेय’ कहते हैं।।

Definition: That which is known through proofs, like the forms perceived by the eyes; this is called ‘प्रमेय.’

86. प्रत्यक्ष (Direct Perception)

जो प्रसिद्ध शब्दादि पदार्थों के साथ श्रवणादि और मन के निकट सम्बन्ध से ज्ञान होता है; उसको ‘प्रत्यक्ष’ कहते हैं।।

Definition: Knowledge gained through direct association with objects, like hearing and seeing; this is called ‘प्रत्यक्ष.’

87. अनुमान (Inference)

किसी पूर्व दृष्ट पदार्थ के अङ्ग्र को प्रत्यक्ष देखकर पश्चात् उसके अदृष्ट अङ्ग्र का जिससे यथावत् ज्ञान होता है; उसको ‘अनुमान’ कहते हैं।।

Definition: Knowledge derived from observing part of an object and inferring the rest; this is called ‘अनुमान.’

88. उपमान (Comparison)

जैसे किसी ने किसी से कहा कि गाय के समतुल्य नील गाय होती है, जो कि साधृश्य उपमा से ज्ञान होता है, उसको ‘उपमान’ कहते हैं।।

Definition: Knowledge gained through analogy, such as comparing a cow to a blue cow; this is called ‘उपमान.’

89. शब्द (Verbal Testimony)

जो पूर्व आत्र परमेश्वर और पूर्वोक्त आत्र मनुष्य का उपदेश है; उसी को ‘शब्द प्रमाण’ कहते हैं।।

Definition: The teachings of past sages and divine utterances; this is called ‘शब्द प्रमाण.’

90. ऐतिह्य (Tradition)

जो शब्द प्रमाण के अनुकूल हो; जो कि असम्भव और झूठा लेखन हो; उसी को ‘इतिहास’ कहते हैं।।

Definition: Historical accounts and records that align with truth; this is called ‘ऐतिह्य.’

91. अर्थापत्ति (Implication)

जो एक बात के कहने से दूसरी बात बिना कहे समझी जाय उसको ‘अर्थापत्ति’ कहते हैं।।

Definition: Understanding one thing through the implication of another; this is called ‘अर्थापत्ति.’

92. सम्भव (Possibility)

जो बात प्रमाण युक्ति और सृष्टिक्रम में युक्त हो; वह ‘सम्भव’ कहलाता है।।

Definition: Knowledge that aligns with reason and the order of creation; this is called ‘सम्भव.’

93. अभाव (Non-Existence)

जैसे किसी ने किसी से कहा कि तू जल ले आ। उसने वहाँ देखा कि यहाँ जल नहीं है परन्तु जहाँ जल है वहाँ से ले आना चाहिए। इस अभाव निमित्त से जो ज्ञान होता है; उसको ‘अभाव’ प्रमाण कहते हैं।।

Definition: Knowledge derived from the absence of something, like understanding the absence of water in a place; this is called ‘अभाव.’

94. शास्त्र (Scripture)

जो सत्यविद्याओं के प्रतिपादन से युक्त हो और जिसमें करके मनुष्यों के सत्य तत्व शिक्षा हो; उसको ‘शास्त्र’ कहते हैं।।

Definition: Texts that present true knowledge and teach essential truths to humans; these are called ‘शास्त्र.’

95. वेद (Vedas)

जो ईश्वरोक्, सत्यविद्याओं से ऋक़्संहितादि चार पुस्तक हैं जिनसे मनुष्यों को सत्य-सत्य ज्ञान प्राप्त होता है; उनको ‘वेद’ कहते हैं।।

Definition: The four eternal scriptures revealed by God, providing true knowledge to humanity; these are called ‘वेद.’

96. पुराण (Puranas)

जो प्राचीन ऐतिहास, शतपथ ब्राह्मणादि ऋषि मुनिकृत सत्यार्थ पुस्तक हैं; उन्हीं को ‘पुराण’, ‘इतिहास’, ‘कल्प’, ‘गाथा’, ‘नाराशंसी’ कहते हैं।।

Definition: Ancient texts like the Shatapatha Brahmana, written by sages, presenting historical and moral teachings; these are called ‘पुराण.’

97. उपवेद (Secondary Vedas)

जो आयुर्वेद वैदकशास्त्र, जो धनुर्वेद शस्त्रास्त्र विद्या, राजधर्म, जो गान्धर्ववेद गानशास्त्र और अर्थवेद जो शिल्पशास्त्र है; इन चारों को ‘उपवेद’ कहते हैं।।

Definition: The secondary branches of Vedic knowledge, including Ayurveda (medicine), Dhanurveda (archery), Gandharvaveda (music), and Arthaveda (economics and politics); these are called ‘उपवेद.’

98. वेदांग (Limbs of the Vedas)

जो शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष आदि सनातन शास्त्र हैं; इनको ‘वेदांग’ कहते हैं।।

Definition: The six auxiliary sciences supporting Vedic knowledge: phonetics, rituals, grammar, etymology, metrics, and astronomy; these are called ‘वेदांग.’

99. उपांग (Subordinate Branches)

जो सर्वत्र मुक्ति के मीमांसा, वैशेषिक, न्याय, योग, सांख्य और वेदान्त के शास्त्र हैं; इनको ‘उपांग’ कहते हैं।।

Definition: The philosophical systems associated with liberation: Mimamsa, Vaisesika, Nyaya, Yoga, Samkhya, and Vedanta; these are called ‘उपांग.’

100. नमस्ते (Greeting)

मैं तुम्हारा मान्य करता हूँ।।

Definition: The respectful salutation meaning “I bow to you.”

These definitions provide a foundation for understanding the key concepts of Sanatan Dharma as presented by Maharishi Dayanand Saraswati. By examining these principles, we can gain a deeper appreciation of the spiritual and philosophical richness inherent in Hinduism.

Reflections on Hindu Philosophy and Definitions of Key Concepts

Understanding Hindu philosophy is essential for appreciating the depth and breadth of Sanatan Dharma. Throughout our three-part series, we’ve explored 100 essential definitions provided by Maharishi Dayanand Saraswati, each one offering valuable insights into this ancient, flexible, and inclusive system. These explorations not only deepen our understanding of Hindu philosophy but also highlight how its teachings can be applied in modern life to foster a more inclusive and enlightened society.

This journey through Hindu philosophy reveals that Sanatan Dharma is a dynamic, living philosophy that readily adapts to various beliefs and practices, reflecting the evolving nature of Hinduism. By delving into Maharishi Dayanand Saraswati’s definitions, we’ve seen how the core concepts of Hindu philosophy sustain their relevance and offer profound implications for both personal and collective spiritual growth.

As we conclude this series, we hope that the insights gained have enriched your understanding of Hindu philosophy and provided a deeper comprehension of the meaning of Sanatan Dharma. This exploration underscores the timeless relevance of these teachings and their capacity to guide us towards a more harmonious and spiritually aware existence.

Feature Image: Click here to view the image.

#HinduPhilosophy #SanatanDharma #MaharishiDayanand #VedicKnowledge #HinduWisdom

Visit the related blogs

 

Dharma Meaning: Key Concepts in Hindu Philosophy

To learn more about Dharma visit these blogs

Vedic Mathematics: Power and Possibilities

Maharishi Panini: Deciphering the Genius

Hindu Festivals and Fastings: The Essence of Dharma

Leave a Reply

Your email address will not be published.