यह लेख धार्मिक ग्रंथों में निहित उस संरचना का विश्लेषण करता है जहाँ दूत की आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा के समकक्ष रखा गया है। पाठीय उदाहरणों के माध्यम से यह दिखाया गया है कि यह व्यवस्था व्यवहार में कैसे दंड, कानून और आधुनिक प्रवर्तन प्रणालियों को प्रभावित करती है, जिससे “इस्लामी सत्ता का विरोधाभास” उत्पन्न होता है।
